देवउठनी एकादशी 2020: पूजा मुहूर्त एवं विष्णु पूजा की विधि

  • 3 years ago
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। जानिए साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है, क्या है पूजा की विधि और देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त क्या है।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोग देवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं। क्षीर सागर में चार महीने की योग निद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देव उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है।

धर्मग्रंथ के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। दैत्य और भगवान विष्णु के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत ही थक गए थे और क्षीर सागर में आकर सो गए और कार्तिक की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे, तब देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है।

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परम्परा है। इस दिन भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह होता है।
साल 2020 में देवउठनी एकादशी कब है।

साल 2020 में देवउठनी एकादशी 25 नवंबर 2020 बुधवार को मनाई जाएगी।

देवउठनी एकादशी 2020 का शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि का प्रारंभ - 25 नवंबर 2020 बुधवार सुबह 2 बजकर 42 मिनट से

एकादशी तिथि की समाप्ति - 26 नवंबर 2020 गुरुवार सुबह 5 बजकर 10 मिनट पर
शुभ समय- 6:00 से 9:11, 5:00 से 6:30 तक

राहुकाल- दोप. 12:00 से 1:30 बजे तक
देवशयनी एकादशी पर से ही सभी शुभ कार्य बंद हो जाते है जो देवउठनी एकादशी से शुरू होते हैं। इन चार महीनों के दौरान ही दीवाली मनाई जाती है। जिसमें भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को जगाने के बाद देवी देवताओं, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करके देव दीवाली मनाते हैं।

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पूरे परिवार पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी घर पर धन सम्पदा और वैभव की वर्षा करती हैं।

देवउठनी एकादशी के दिन कैसे करें घर में तुलसी जी का विवाह, आइए जानें...

1 * शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।

2 * तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।

3 * तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।

4 * तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।

5 * गमले में शालिग्राम जी रखें।

6 * शालिग्रामजी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।

7 * तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।

8 * गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।


9 * अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।

10 * देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।

11* कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)

12 * प्रसाद चढ़ाएं।

13 * 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।

14 * प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।

15 * प्रसाद वितरण अवश्य करें।

16 * पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।

17 * इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है - हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।

18 *इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जा सकता है-

'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'

19 * तुलसी नामाष्टक पढ़ें :--
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।

20. मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगें।

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