भगवद गीता - अध्याय २ - पद २१ और २२ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
भगवद गीता के इस वीडियो में हम आपको भगवद गीता के सबसे प्रसिद्ध श्लोक के बारे में बताने जा रहें हैं

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१ इक्कीसवां श्लोक इस प्रकार है ;

वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम।

कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम ।।२१।।

२ इस श्लोक में भगवन कृष्ण अर्जुन से कहते है;

हे अर्जुन! जो मनुष्य इस आत्मा को अविनाशी, शाश्वत, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह मनुष्य किसी को कैसे मार सकता है या किसी के द्वारा कैसे मारा जा सकता है?

३ बाइसवें श्लोक में भगवान कृष्ण ने सरल शब्दों में आत्मा का सारपूर्ण सत्य समझाया है। यह श्लोक इस प्रकार है

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।२२।।

४ यह श्लोक भगवद गीता के सभी श्लोकों में अधिक लोकप्रिय माना जाता है। इस श्लोक का अर्थ है

जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नए वस्त्रों को धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरों को त्याग कर नये शरीरों को धारण करती है

५ यहाँ पर मुख्य मुद्दा यह है की शाश्वत आत्मा मानव शरीर से अलग है और यही कारण है की वह बहुत से शरीरों से जुडी होती है। एक बार उसका एक उद्देश्य समाप्त हो जाता है, तब वह एक शरीर को छोड़ कर नए शरीर में चली जाती है

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