भगवद गीता - अध्याय १ - पद २७ और २८ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
इस वीडियो में, आप देखेंगे कि कैसे अर्जुन चीख़ पड़े यह देखकर की अपने ही रिश्तेदार लड़ाई में अपने ही खिलाफ खड़े हुए है

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१ सत्ताईसवाँ और अट्ठाईसवाँ श्लोक यह बताता है।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान् बन्धूनवस्थितान्
कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत् ।। २७ ।।

अर्जुन उवाच
दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ।। २८ ।।

२ इस का भावार्थ है :
जब कौन्तेय (कुन्ती-पुत्र अर्जुन) ने युद्ध की इच्छा रखने वाले इन सभी मित्रों तथा सम्बन्धियों को देखा, तब करुणा से अभिभूत होकर शोक करते हुए अर्जुन ने कहा;
हे कृष्ण! युद्ध में एकदूसरे को मारने के लिए उपस्थित इन सम्बन्धियों को देखकर मेरे शरीर के सभी अंग काँप रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है

३ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिये कि अपने रिश्तेदारों को अपने सामने युद्ध के लिए खड़ा देख अर्जुन की क्या अवस्था हुई


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