भगवद गीता - अध्याय २ - पद १६, १७ और १८ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

  • 5 years ago
इस वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन को आत्मा और शरीर के बीच के संबध के बारे में क्या बताते है

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१ सोलहवें श्लोक में, भगवान कृष्ण अर्जुन से विद्यमान और गैर-विद्यमान चीजों की वास्तविक प्रकृति के बारे में बात करते हैं

२ सोलहवां और सतरावां श्लोक प्रकार है:

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।

उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः ।।१६।।

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम ।

विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ।।१७।।

३ इनका भावार्थ है :

तत्वदर्शीयों के द्वारा निष्कर्ष निकाल कर देखा गया है कि असत्‌ वस्तु (शरीर) का कोई अस्तित्व नहीं होता है और सत्‌ वस्तु (आत्मा) में कोई परिवर्तन नही होता है। जो सभी शरीरों में व्याप्त है उस आत्मा को ही तू अविनाशी समझ, इसको नष्ट करने में कोई भी समर्थ नहीं है

४ अठारवें श्लोक में श्रीकृष्ण ने कहा:

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः

अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत

५ इस श्लोक का अर्थ है:

इस अविनाशी, अमाप, नित्य-स्वरूप आत्मा के ये सब शरीर नष्ट होने वाले हैं, अत: हे भरतवंशी! तू युद्ध कर।

६ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन को आत्मा का सखोल ज्ञान कैसे देते है

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