अतुल की कहानियां
  • 2 years ago
बात 1936 के बर्लिन ओलंपिक की है। जाहिर है तब जर्मनी में तानाशाह एडोल्फ हिटलर और उसकी नाजी विचारधारा की तूती बोल रही थी। हिटलर अश्वेतों को दोयम दर्जे का मानता था। उसका मानना था कि इन्हें ओलंपिक में शामिल ही नहीं करना चाहिए। पर ऐसा हुआ नहीं। ओलंपिक जैसे खेलों के महाकुंभ पर किसी की विचारधारा का कोई असर नहीं था।
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