सीधे चल कर भी वहीं पहुँचोगे, और ठोकरें खा-खा कर भी || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)

  • 4 years ago
वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१६ जुलाई २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

पौढ़ी (जपुजी साहिब) :
सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥

अर्थ: जो तुझे भाते हैं वही तुझे गाते हैं| तेरे भक्त तेरे रस में डूबे रहते हैं |

प्रसंग:
"सीधे चल कर भी वहीं पहुँचोगे, और ठोकरें खा-खा कर भी" इस संदर्भ में गुरु नानक हमें क्या सीखा रहें है?
जो तुझे भाते हैं वही तुझे गाते हैं का क्या अर्थ है?
मन को सीधे चलना क्यों नहीं भाता है?
"तेरे भक्त तेरे रस में डूबे रहते हैं" यहाँ रस कहने से क्या आशय है?

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