लगे है, तब है ; जब लगे नहीं है, तब भी है || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2014)
  • 4 years ago
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शब्दयोग सत्संग
२३ मार्च २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता (अध्याय १८ श्लोक ४)
भवोऽयं भावनामात्रो न किंचित् परमर्थतः।
नास्त्यभावः स्वभावनां भावाभावविभाविनाम्॥

प्रसंग:
हमारा मन आसक्ति -अनासक्ति के बीच क्यों घूमता रहता है?
हमें संसार में सत्य क्यों नहीं मालूम पड़ता है?
अष्टावक्र क्यों कहते है की आंखे हो तो नकली में भी असली दिख जाता है?
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