अपनी बात तो तब करें जब कोई दूसरा नज़र आये || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2014)
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शब्दयोग सत्संग
९ मार्च २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता‎ (अध्याय १८ श्लोक १६)
येन दृष्टं परं ब्रह्म सोऽहं ब्रह्मेति चिन्तयेत्।
किं चिन्तयति निश्चिन्तो यो न पश्यति॥

अर्थ:
भाव और अभाव के मध्य स्वभाव का कभी नाश नहीं हो सकता|

प्रसंग:
विचार की उच्चतम तल क्या है?
अहं ब्रह्मास्मि का क्या अर्थ है?
विचार उच्चतम तल पर है या निम्नतम तल पर कैसे जाने?