यदि जीवन यज्ञ नहीं, तो जीने योग्य नहीं || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2019)
  • 4 years ago
वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
28 जुलाई 2019
अद्वैत बोधस्थल ,ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:

श्रीम्द्भाग्वाद गीता (अध्याय 3, श्लोक 9)

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर ॥

भावार्थः
यज्ञ की प्रक्रिया ही कर्म है
इस यज्ञ की प्रक्रिया के अतिरिक्त जो भी किया जाता है
उससे जन्म-मृत्यु रूपी बन्धन उत्पन्न होता है, अत: हे कुन्तीपुत्र!
उस यज्ञ की पूर्ति के लिये संग-दोष से मुक्त रहकर
भली-भाँति कर्म का आचरण कर ।
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उपासना किसकी करें? निराकार की या साकार की?
यज्ञ का अर्थ क्या है?
संग-दोष से मुक्त रहकर कर्म कैसे करें?

संगीत: मिलिंद दाते
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