काशी में महाश्मशान पर खेली गई चिताओं के भस्म के होली
- 6 years ago
Holi with ash of funeral ground in Kashi in Varasnasi
वाराणसी। धर्म, अध्यात्म की नगरी काशी में होली का एक अलग ही महत्व है। काशी के मान्यता के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती के साथ गौना कर काशी आए थे। इसी खुशी में काशीवासी, भगवान शिव के गण व जनमानस और बारातियों पर अबीर गुलाल से सराबोर किया गया था। इसी परम्परा की कड़ी में रंगभरी एकादशी को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के महंत आवास से गर्भगृह तक रजत प्रतिमा की पालकी निकली गयी। ढोल नगाड़ों और संगीत के बीच हर हर महादेव के उद्घोष पर उत्सव मनाया गया।
वहीं रंग एकादशी के दूसरे दिन काशी में स्थित श्मशान पर भी चिताओं की भस्मी के साथ होली खेलने की भी एक अनूठी परंपरा है जो सारी दुनिया मे सिर्फ काशी में ही देखने को मिलती है। इसके संबंध में एक मान्यता यह है कि जब बाबा विश्वनाथ मां पार्वती का गौना करने के लिए आये थे तो उनके साथ भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व , किन्नर जीव जंतु आदि नहीं थे, जिनके लिए श्मशान पर चिताओं की भस्मी से होली खेले जाने की परंपरा को बनाया गया जिसका निर्वहन आज तक काशी की धरती पर किया जाता है।
वाराणसी। धर्म, अध्यात्म की नगरी काशी में होली का एक अलग ही महत्व है। काशी के मान्यता के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती के साथ गौना कर काशी आए थे। इसी खुशी में काशीवासी, भगवान शिव के गण व जनमानस और बारातियों पर अबीर गुलाल से सराबोर किया गया था। इसी परम्परा की कड़ी में रंगभरी एकादशी को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के महंत आवास से गर्भगृह तक रजत प्रतिमा की पालकी निकली गयी। ढोल नगाड़ों और संगीत के बीच हर हर महादेव के उद्घोष पर उत्सव मनाया गया।
वहीं रंग एकादशी के दूसरे दिन काशी में स्थित श्मशान पर भी चिताओं की भस्मी के साथ होली खेलने की भी एक अनूठी परंपरा है जो सारी दुनिया मे सिर्फ काशी में ही देखने को मिलती है। इसके संबंध में एक मान्यता यह है कि जब बाबा विश्वनाथ मां पार्वती का गौना करने के लिए आये थे तो उनके साथ भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व , किन्नर जीव जंतु आदि नहीं थे, जिनके लिए श्मशान पर चिताओं की भस्मी से होली खेले जाने की परंपरा को बनाया गया जिसका निर्वहन आज तक काशी की धरती पर किया जाता है।