VID_35410518_201251_707

  • 2 months ago
चैतन्य महाप्रभु जब सन्यास ग्रहण करने के पश्चात् जगन्नाथ पुरी जाने लगे, तब अद्वैताचार्य ने उनसे नवद्वीप रुकने का आग्रह किया था । किंतु महाप्रभुजी ने उनकी एक नहीं सुनी और वह पुरी जाने लगे । तब प्रेमवश अद्वैताचार्य (विष्णु जी के अवतार) उन्होंने महाप्रभुजी को श्राप दिया था कि आपको 500 वर्ष के अंतराल में दो बार इस पृथ्वी पर फिर से आना होगा और इस बार आपको अपने ग्राम में ही रहकर अपने भक्तों को सुख देना होगा । ठीक 480 वर्ष के पश्चात् , जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वितीय अवतार के रूप में अवतरित हुए और इस बार उन्होंने अपने निज ग्राम, मनगढ़ में ही रहकर भक्तों को सत्संग प्रदान किया । ठीक वैसा ही नाम संकीर्तन, वैसी ही राधाकृष्ण भक्ति, वैसा ही गौर स्वरूप । भक्त जब श्री कृपालुजी महाराज को कीर्तन करते हुए देखते थे,तो ऐसा प्रतीत होता था जैसे राधा रानी ही मूर्तिमान होकर गौर स्वरूप में हमें भक्ति रस, प्रेम रस में बरबस निमग्न कर रही हैं ।