सर, दूसरों का सोचूँगा तो मुक्ति कैसे होगी? || आचार्य प्रशांत (2023)

  • 3 months ago
वीडियो जानकारी: 17.11.2023, बोध प्रत्यूषा, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:

~ जहाँ रुकने का खतरा होता है, वहाँ आप स्वयं ही अपनी संवेदनशीलता रोक देते है।
~ संवेदनशीलता का अर्थ होता है हर अनुभव से सूक्ष्मता से गुजरना।
~ जब भीतर ताकत होती है स्वास्थ्य होता है केवल तभी व्यक्ति संवेदनशील हो पाता है।
~ सब अनुभवों के प्रति उन्मुक्त खुलापन तभी होता है जब भीतर आप जान चुके हों कि अब आपको बाहर कोई हिला सकता नहीं।
~ संवेदनशीलता का अर्थ भोग नहीं होता।

संगीत: मिलिंद दाते
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