जीत के लिए अब पुराने नेताओं के सहारे बीजेपी, ये बुजुर्ग नेता बनेंगे कांग्रेस का तोड़?

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कहते हैं पेड़ कितना भी पुराना क्यों न हो जाए छाया देना नहीं भूलता. अब जब चुनाव नजदीक है तो बीजेपी को अपने वैसे ही दरख्तों की याद आई है. जिसे वो भले ही कई सालों से सींचना भूल चुकी हो लेकिन उनके साए में पार्टी अब भी पनप सकती है. जब जीत की उम्मीद बहुत ज्यादा धुंधली पड़ी हुई है तो बीजेपी हर हथकंडा अपनाने पर अमादा है. ताकि, भूले से भी धूंध तो छटे ही, कम से कम चुनाव तक उसके दोबारा गहरे होने के आसार भी न रहें. इसी चुनावी जीत की खातिर अनुशासन के उसूलों से समझौता कर प्रीतम लोधी की वापसी करवाई गई है. क्योंकि प्रीतम लोधी बिना बागी हुए भी बीजेपी पर भारी पड़ रहे थे. बुंदेलखंड और चंबल में भारी नुकसान के मद्देनजर बीजेपी ने रणछोड़ बनना ही बेहतर समझा. वैसे भी बड़े रण को जीतना है तो छोटे रण में पीठ दिखाने में कोई बुराई भी तो नहीं है. खैर प्रीतम लोधी का चैप्टर अब क्लोज हो चुका है. अब उन नेताओं को एक एक कर साधना है जिनकी जड़े गहरी हैं. पर पार्टी में जगह छोटी हो गई. उनके लिए फिर दिल बड़े किए जा रहे हैं. नड्डा की सीख की शुरूआत बीजेपी ने फोन कॉल से की है.

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