आदिवासियों को नहीं मिल रही मूलभूत सुविधाएं

  • 3 years ago
उपरोक्त विषय के अंतर्गत निवेदन है कि सविधान में आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में पहचान प्राप्त है और इसी पहचान के आधार पर तमाम प्रकार की सामाजिक शेक्षणिक पार्मिक राजनीतिक, सास्कृतिक विरासत को सुरक्षित करने के लिए विभिन्न अनुच्छेदो और अनुसूचियों में अधिकार प्राप्त है। विडबना यह है कि जिन तमाम विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ते हुए गुलाम भारत में आदिवासी महापुरुषो ने जल जगल, जमीन और अपनी संस्कृति को सुरक्षित करने के लिए जान की बाजी लगाई थी, लेकिन तथाकधित 1947 को मिली आजादी और हमें 1950 में मिले अधिकारों के बावजूद विकास के नाम पर औद्योगीकरण के माध्यम से बड़े-बड़े बांध बनाकर प्राकृतिक संसाधनो का लिए उत्खनन करके आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीन से विस्थापित किया गया और उनका पुनर्वास करने का कोई ईमानदार प्रयास नहीं हुआ। जबकि संविधान में अनुच्छेद 244 के तहत अनुसूची 5 और 6 में उल्लेख है कि इन क्षेत्रों में केंद्रीय या राज्य सरकार को दखल देने का अधिकार नहीं होगा। बल्कि जनजाति भत्रणापरिषद की स्थापना कर वही विकास की सारी संभावनाओं को जमीन पर उतारने का काम करे और उसका नियंत्रण प्रदेश में राज्यपाल और देश में राष्ट्रपति के अधीन होगा। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के विरोध में राज्य एवं केंद्र की सरकारे लगातार आदिवासियों के विरोध में कानून बनाकर आदिवासियों को बेदखल करने का काम कर रही है। इसलिए देशभर के लाखो जनजातियों के सामाजिक संगठनों में आक्रोश होने से उन्हें आंदोलन करना पड़ रहा है और हम सभी संगठनों ने अपनी बुनियादी और जायज मागों को एकत्रित कर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह कदम उठाया है। हमारी निम्नलिखित मांगे है कृपया आप संविधान के दायरे में रहकर हमारी मांगों पर विचार कर उचित कार्यवाही करे।

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