बीजेपी में खलबली का असली सच II हार का डर या फिर मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश !

  • 3 years ago

बीजेपी में मची खलबली का असली सच !
क्या बीजेपी को सता रहा है यूपी में हार का डर ?
या फिर मूल मुद्दों से ध्यान हटाने की हो रही कोशिश !
यूपी की सियासत में खुद की छवि सुधारने की कोशिश !
2022 के मद्देनजर प्लानिंग और प्लॉटिंग का असली सच !
देखिए क्या कहती है यूपी की मौजूदा सियासी फिजा ?

कोरोना काल में फैली बदहाली ने बीजेपी की हर व्यवस्था की पोल खोल दी…सामाजिक व्यवस्था हो या प्रशासनिक व्यवस्था…ऐसे में अब उत्तर प्रदेश में बीजेपी को लगता है कि कहीं उसकी नैया डूब न जाए…डूबती नैया के लिए विलेन प्रदेश के मुखिया को कैबिनेट के ही कई मंत्री बना रहे हैं…ऐसे में अब बीजेपी भी छवि को पाक साफ करने के लिए नए-नए प्लान तैयार कर रही है…बीजेपी को लगता है कि जब तक बेहतर प्लान नहीं होगा तब तक जनता भरोसा नहीं करेगी…ऐसे में मंत्री मंडल में विस्तार के साथ ही नेतृत्व परिवर्तन पर भी विचार चल रहा है…साथ ही पार्टी के अंदर मचे घमासान पर भी सुर्खियां बन रही है…ऐसे में विपक्षी दलों का कहना है कि बीजेपी के घर में जो भी हो रहा है वो सब एक नौटंकी का हिस्सा है…क्योंकि बीजेपी मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है…वहीं बात की जाए सियासत की तो सियासी गलियारों में ये कहावत बहुत प्रसिद्ध है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है…पंडित नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक सभी का संबंध उत्तर प्रदेश से रहा है…यहां तक कि जब प्रधानमंत्री बनने की बात आई तो लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके नरेंद्र मोदी को भी उत्तर प्रदेश का ही रुख करना पड़ा…90 के दशक में जब राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी की स्थिति डगमगाई तब क्षेत्रीय दलों ने मिलकर दिल्ली की राजनीति में महत्ता हासिल कर ली…ऐसे मे भी उनकी राजनीति में भी प्रधानमंत्री पद के लिए प्रमुखता से उत्तर प्रदेश से ही कई नाम रहे…एक बार फिर बीजेपी के अंदरखाने सियासी गलियारों में घमासान मचा है, जिससे अटकलों का दौर चल पड़ा है…लेकिन क्या ये सियासी घमासान 2022 को टारगेट करके हो रहा है या फिर 2024 की केंद्रीय राजनीति का प्लॉट तैयार हो रहा है…राजनीति में राजनेता दूर की सोचकर फैसले लेते हैं…शह-मात का खेल चलता रहता है और अचानक से कोई विजयी की भूमिका में सामने आ जाता है…सियासी चर्चाओं के बीच उत्तर प्रदेश में चुनावी साल की शुरुआत हो चुकी है…जीत कैसे मिले इस पर काम चल रहा है…रणनीतिक तैयारियों के तहत बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष और यूपी प्रभारी राधामोहन सिंह की रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व के पास पहुंच चुकी है…रिपोर्ट मिलने के बाद राधामोहन सिंह दोबारा लखनऊ का दौरा करते हैं…राजभवन पहुंचकर राज्यपाल से मिलते हैं फिर बाहर आकर बताते हैं कि शिष्टाचार मुलाकात थी…उसी दिन वो विधानसभा अध्यक्ष से भी मिलते हैं और उसे पुराने संबंधों के आधार पर की गई मुलाकात बताते हैं…विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित कहते हैं कि दोनों नेताओं में राष्ट्रवाद और प्राचीन इतिहास पर बात हुई है…एक दिन में दो संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों से मुलाकात के गहरे मायने हो सकते हैं…क्या पार्टी सदन में किसी विषम परिस्थिति में आने वाली है…प्रदेश मे अंदरखाने पक रही खिचड़ी के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार 1982 का दौर याद करते हैं और कहते हैं कि 1982 में विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और श्रीपति मिश्र विधानसभा अध्यक्ष हुआ करते थे…उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि बेहमई कांड हो चुका था…कानून-व्यवस्था पर सवाल उठने शुरू हुए थे…डकैतो

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