Vikash dube ka encounter kanpur mein mara gaya

  • 4 years ago
उज्जैन के पुलिस ट्रेनिंग स्कूल से कारों का एक काफिला निकलता है और मक्सी की तरफ दाएं मुड़ जाता है. खामोशी को तोड़ती है कंटाप की एक आवाज. कानपुर का वर्ल्ड फेमस कंटाप जैसा नहीं बल्कि सिर के पीछे हल्की से चपत, जहां छोटा दिमाग होता है.
'तो बे दुबे, कहां खाएगा, गा*ड में या आ*ड में?' एक पुलिसवाले का सवाल और सबकी हंसी छूट जाती है.

'राते रात में कानपुर पहुंचना है, रेस दिए रहो' एक और की आवाज
कार शाजापुर से आगे कानपुर की ओर बढ़ती है. 'इस च*तिये की सुबह नहीं' पीछे से कोई हिंदी फिल्म के एक टाइटल के शब्दों से विकास को कुछ कहने के लिए उकसाता है.विकास खामोश है. न अंजाम भुगतने की धमकी देता है, न न्यायिक जांच, वर्दी उतरवा लेने या अपने राजनीतिक रसूख की. न ये कह पाता है कि पुलिसवाले जो करने की बात कर रहे हैं, अगर वो करते हैं तो कैसे वो एक क्राइम होगा.
'पाप लगेगा, ब्रह्म हत्या का पाप' इस समय वो सिर्फ यही कह सकता है. ब्राह्मण की हत्या महापाप जो मानी गई है.
'और तुम जो मिश्रा जी को मारे, वो ब्रह्महत्या नहीं था, भोस*के? ' जवाब में एक पुलिसवाला विकास के हाथों मारे गए चौबेपुर के सीओ देवेंद्र मिश्रा की हत्या की याद दिलाता है.

विकास कार के रियर व्यू शीशे से देखता है. पुलिस की कारों के अलावा भी सड़क पर कारें हैं. मीडिया की गाड़ियां पीछे-पीछे भाग रही हैं. उनकी फ्लैशलाइट में उसे उम्मीद की एक किरण दिखती है.

विकास को उम्मीद थी कि अगर उसने अपनी गिरफ्तारी सुबह दे दी तो वो दिन में ही ट्रांजिट हो जाएगा. दिन के उजाले में एनकाउंटर आसान नहीं होते. हालांकि कुछ मामलों में दिन में भी एनकाउंटर हुए हैं.

लेकिन अब रात गहरा चुकी है और वो सड़क पर है. एसटीएफ की सिक्योरिटी में असुरक्षित. काफिला एक के बाद एक टोल प्लाजा, गहरी नींद में सोते हुए गांवों, कस्बों और कस्बे से लगने वाले इलाकों को पार करता जाता है. इस सफर में खूब हंसी ठहाका है, ज्यादातर का निशाना विकास ही है. चौबेपुर थाने के तिवारी जी जैसे उसके वर्दीवाले दोस्तों के बीच ये चुटकलेबाजी होती तो वो खुद भी इनपर हंसता.

लेकिन सादा कपड़ों में मौजूद पुलिसवालों के ये जोक विकास दुबे को परेशान कर रहे थे. तकरीबन सबको लगता है कि विकास को कोरोना है. और वो मामला निपट जाने के बाद टेस्ट कराने को लेकर परेशान हैं. टेस्ट के लिए भी जुगाड़ लगाना पड़ेगा. कंटाप जड़ते हुए एक पुलिस वाला कहता है- "वैसे मैं तो कुछ दिन परिवार से दूर ही रहूंगा, सब इस ... की वजह से". कंटाप इस बार असली था. पुलिसवाले खतरा मोल ले चुके थे...कोरोना का खतरा.

पौ फटने लगी है. विकास के लिए भी उम्मीद की सुबह है कि वो शायद अब दिन देख सके. लेकिन ये फीकी मुस्कान ज्यादा देर रही नहीं. मीडिया की जो गाड़ियां उसके काफिले का पीछा कर रही थीं, वो रियरव्यू से अचानक गायब हो जाती हैं. पीछे सड़क पर उनको कोरोना वायरस की चेकिंग के नाम पर रोक लिया जाता है.
सूरज निकल आया था, आकाश में लालिमा छाई थी लेकिन शायद ये सबकुछ भी मजाक ही था.
सड़क पर कुछ पुलिसकर्मी इशारा करते हैं और कार रुकती है. कोई कहता है 'ब्रह्म हत्या', इस बार आवाज विकास दुबे की नहीं थी. और एक ब्राह्मण अफसर को ये काम दिया जाता है ताकि बाद में भी सब कुछ ठीक रहे... तड़ तड़ तड़ की आवाज...और सब खुश.पुलिस का काफिला विकास दुबे को कानपुर ला रहा था. भौंती गांव के पास तेज रफ्तार कार पलट गई. विकास दो एसटीएफ अफसरों के बीच दब गया. उन दोनों को चोट लगी थी और खून निकल रहा था. उसने एक को ढक्का दिया और दूसरे पर चढ़कर खिड़की के टूटे हुए शीशे से खुद को बाहर निकाला. उसने

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