#बच्‍चे काम पर जा रहे हैं # राजेश जोशी # GRADE 9# CBSE # POEM # वीणा की वाणी || veena ki vaani ||

  • 4 years ago
Bacche kaam par ja rahe hein- poem- rajesh joshi
sharmaveena9999@gmail.com, वीणा की वाणी
समाज की व्यवस्था और गरीबी के कारण भारत में करोड़ो लोग पेट भर रोटी नहीं जुटा पाते इसलिए इन परिवारों के
बच्चों को काम करना पड़ता है। यहीउनकी मजबूरी है| भिखारी, मज़दूर और गरीब व्यक्ति का बच्चा खेल-खिलौने
किताबों से दूर है। कानून बनाने के बावजूद भी बाल-श्रम की समस्या जस की तस है। सरकार भी पूरी तरह से इनकी गरीबी मिटाने एवं सुविधाएं दिला पाने में समर्थ नहीं हो पा रही है। समाज में भी बाल-श्रम को दूर करने की इच्छा शक्ति दिखाई नहीं पड़ती । कवि के अनुसार यह स्थिति बड़ी ही भयावह है, जो आदर्श एवं उन्नत राष्ट्र की सबसे बड़ी बाधा है।

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं___
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे ?

क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्‍या दीमकों ने खा लिया हैं
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें

क्‍या सारे मैदानए सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्‍म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्‍बमामूल

पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुज़रते हुए
बच्‍चेए बहुत छोटे छोटे बच्‍चे
काम पर जा रहे हैं।

बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता में कवि ने बच्चों के काम पर जाने की समस्या को प्रमुखता से उभारा है। उन्होंने समाज से प्रश्न किया है कि ऐसा क्या हो गया कि बच्चों को पढ़ने.लिखने की उम्र में काम पर जाना पड़ रहा है। समाज के लोग यह सब देखकर भी चुप बैठे हैं। कवि को समाज की यह संवेदनहीनता और भावशून्यता बड़ी ही भयानक लगती है। कवि समाज की इस संवेदनहीनता तथा भावशून्यता को दूर करना चाहता है। वह चाहता है कि समाज इन बच्चों के बारे में कुछ सोचे और उन्हें बाल.मजदूरी से छुटकारा दिलाए जिससे उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। सभी लोग मिलकर बच्चों को पढ़ने.लिखने खेलने.कूदने का अवसर प्रदान कराएँ जिससे पढ़.लिखकर यही बच्चे कल देश के सुयोग्य नागरिक बन सकें।
बच्चों का बचपन पढ़ने.लिखने तथा खेलने.कूदने के लिए होता है। यह मस्ती से भरा हुआ तनाव मुक्त होता है। उन पर किसी का कोई दबाव नहीं होता। ऐसे में प्रतिकूल परिस्थितियों में उन्हें अपनी रोजी.रोटी कमाने के लिए काम पर जाना पड़ रहा है। यह देखकर एक तो हमारे सामने एक भयानक प्रश्न उठ खड़ा होता है। इससे बच्चों की खुशियाँ छिन जाती हैं और उनका जीवन और भविष्य अंधकारपूर्ण हो जाता है।
रात में पड़ने वाला कोहरा सुबह के समय और भी घना हो जाता है जो शीत की भयावहता को और भी बढ़ा देता है। वातावरण में छाया घना कोहरा और टपकती बर्फीली फुहारें सर्दी को चरम पर पहुँचा देती हैं। इस वातावरण में कोई भी घर से बाहर नहीं निकलना चाहता। इस प्रकार के माहौल में काँपते हुए बच्चों को अपनी जीविका चलने और रोजी.रोटी कमाने हेतु काम पर जाते देखकर कवि दुखी होता है। वह सोचता है कि काम की परिस्थितियाँ भी एकदम प्रतिकूल हैं पर फिर भी इन बच्चों को काम पर जाना पड़ रहा है।
Grade 9 videos links given below-
https://youtu.be/b_uPklnGVzU
kaidi aur kokila
https://youtu.be/q3yBN2g3IX8
kabir ki saakhiyan
https://youtu.be/7Wrg34nhD8Q

Recommended