मजबूर मजदूरः सुनिए मजदूरों की बेबसी को बयां करती यह कविता
  • 4 years ago
मजदूरों के पलायन का दर्द ऐसा है जिसे देख दिल चीख उठाता है। सुनसान सड़कें हैं, जिनपर केवल कदमों का शोर हैं। भूखे प्यासे मजदूर अपने घर के सफर पर हैं लेकिन कईयों को सफर अधूरा रह जाता है। भूखे नन्हें कदम सूरज की तपिश में जल रहे हैं। मजदूरों की इसी मजबूरी पर सुनिए यह कविता।
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