Mahabharat Episode 69 - Panduvo ke Mama duryodhan Ki Taraf Gaye
  • 4 years ago
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रघुवंश के शल्य पांडवों के मामाश्री थे। लेकिन कौरव भी उन्हें मामा मानकर आदर और सम्मान देते थे। पांडु पत्नी माद्री के भाई अर्थात नकुल और सहदेव के सगे मामा शल्य के पास विशाल सेना थी। जब युद्ध की घोषणा हुई तो नकुल और सहदेव को तो यह सौ प्रतिशत विश्वास ही था कि मामाश्री हमारी ओर से ही लड़ाई लड़ेंगे। एक दिन शल्य अपने भांजों से मिलने के लिए अपनी सेना सहित हस्तिनापुर के लिए निकले। रास्ते में जहां भी उन्होंने और उनकी सेना ने पड़ाव डाला वहां पर उनके रहने, पीने और खाने की उन्हें भरपूर व्यवस्‍था मिली। यह व्यवस्था देखकर वे प्रसन्न हुए। वे मन ही मन युद्धिष्‍ठिर को धन्यवाद देने लगे।
हस्तिनापुर के पास पहुंचने पर उन्होंने वृहद विश्राम स्थल देखे और सेना के लिए भोजन की उत्तम व्यवस्था देखी। यह देखकर शल्य ने पूछा, 'युधिष्ठिर के किन कर्मचारियों ने यह उत्मम व्यवस्था की है। उन्हें सामने ले आओ में मैं उन्हें पुरस्कार देना चाहता हूं।' यह सुनकर छुपा हुआ दुर्योधन सामने प्रकट हुआ और हाथ जोड़कर कहने लगा, मामाश्री यह सभी व्यवस्था मैंने आपके लिए ही की है, ताकि आपको किसी भी प्रकार का कष्ट न हो।'यह सुनकर शल्य के मन में दुर्योधन के लिए प्रेम उमड़ आया और भावना में बहकर कहा, 'मांगों आज तुम मुझसे कुछ भी मांग सकते तो। मैं तुम्हारी इस सेवा से अतिप्रसन्न हुआ हूं।'... यह सुनकर दुर्योधन के कहा, 'आप सेना के साथ युद्ध में मेरा साथ दें और मेरी सेना का संचालन करें।'
यह सुनकर शल्य कुछ देर के लिए चुप रह गए। चूंकि वे वचन से बंधे हुए थे अत: उनको दुर्योधन का यह प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा। लेकिन शर्त यह रखी कि युद्ध में पूरा साथ दूंगा, जो बोलोगे वह करूंगा, परन्तु मेरी जुबान पर मेरा ही अधिकार होगा। दुर्योधन को इस शर्त में कोई खास बात नजर नहीं आई। शल्य बहुत बड़े रथी थे। रथी अर्थात रथ चलाने वाले। उन्हें कर्ण का सारथी बनाया गया था। वे अपनी जुबान से कर्ण को हतोत्साहित करते रहते थे। यही नहीं प्रतिदिन के युद्ध समाप्ति के बाद वे जब शिविर में होते थे तब भी कौरवों को हतोत्साहित करने का कार्य करते रहते थे।
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