मजदूरों का भरोसा टूटा, पूछा— कहां है सरकार?
  • 4 years ago
लाखों मजदूर इस समय देश की सड़कों पर हैं। इनके पैरों में छाले हैं, पेट खाली है और दिल उम्मीद से खाली है। कई राज्येां से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने और बसों से मजदूरों को भेजने के फैसले के बाद भी मजदूरों का पैदल पलायन नहीं रूक पा रहा। वो रुकना नहीं चाहते, क्योंकि उनके खाने और रहने के लिए यहां कुछ नहीं बचा। बसें और ट्रेनों के सफर के लिए रजिस्ट्रेशन जैसा पेचीदा काम उन्हें दिया गया, जैसे तैसे यह रजिस्ट्रेशन करवाकर भी वे नाउम्मीद हैं। उनकी उम्मीदें इस कदर छिटक गई हैं कि उन्हें अब ना सरकार पर भरोसा है और ना भगवान पर। अब उनका भरोसा लौटाया जा सके, ऐसी भी कोशिशें कहीं से होनी चाहिए। इस पैदल पलायन या अनकहा निर्वासन झेल रहे मजदूर जयपुर की 200 फीट बायपास पर कुछ देर आराम के लिए रूके तो, उन्होंने अपनी पीड़ा बयान की।
पहली तस्वीर है हरकेत की। जो 4 मई को जोधपुर से चले हैं, जो बिहार के नालंदा तक का सफर पैदल करेंगे। उन्हें भरोसा नहीं कि वे जिंदा अपने घर तक पहुंच सकेंगे। निराशा में वे पूछते हैं, है कोई भगवान? कोई नहीं है भगवान। है कोई सरकार? कोई नहीं है हमारे लिए।

दूसरे हैं आनंद, जो जोधपुर से बक्सर के सफर पर हैं। वो कहते हैं कि अफवाह थी कि सरकार ने बसें भेजी हमारे लिए। अब तक एक भी बस नहीं मिली जो बिना चार—पांच हजार रुपए मांगे हमें अपने घर तक पहुंचा दे। यह है हमारे देश की व्यवस्था। जिसमें गरीब जनता भोग रही है, बड़े लोग नहीं भुगत रहे। वे घरों में हैं। हमारा घर कहां है? हमारी भूख का क्या? कोई जवाब नहीं किसी के पास।
उनके साथी दीपक और वीरेंद्र यादव भी बक्सर जा रहे हैं।

संतोष परिवार के साथ जोधपुर से निकले हैं, बनारस के लिए। दो बच्चों और पत्नी के साथ। कहते हैं अब खाने को कुछ नहीं बचा।

राम बाबू को जोधपुर से यूपी के कानपुर के पास स्थित फतेहपुर जाना है। वे कहते हैं कि खाने को उनके पास कुछ नहीं। गांव जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया, हैल्पलाइन नं पर बात की तो कहा गया कि कोई गाड़ी नहीं आपके लिए। दो बच्चे हैं साथ। वे कहते हैं कि यूपी सरकार ने छात्रों को आराम से बुला लिया। उन्हें पहले सड़कों पर भूखे रह रहे मजदूरों के बारे में सोचना चाहिए।

ऐसी ही नाउम्मीदी में हैं दीवान, जो ब्यावर में मार्बल का काम करते थे। वे कहते हैं कि चलते—चलते मौत ना आई तो अपने गांव मुरैना पहुंच जाएंगे।
फूलवती को भी अपने दो बच्चों के साथ कानपुर जाना है। छोटी दो साल की बच्ची भूखी मर रही। वे रोते हुए कहती है खाना नहीं आ रहा। बच्चों को क्या खिलाउं। न खाना है, ना दूध।

देश कोरोना जैसी महामारी की चपेट में है। लॉकडाउन का तीसरा चरण चल रहा है। लोग घरों में बंद हैंं, मजदूरों की मानें तो घर में वे बंद हैं, जिनके पास घर है, खाने को थोड़ा बहुत ही सही है। ऐसे में क्या कोई छत नहीं, जो इन मजदूरों को इस महामारी के समय आसरा दे सके, क्या ऐसी कोई रोटी नहीं, जो इनका रोजगार ​छिन जाने के बाद भी इनके पेट तक पहुंच सके। क्या कोई भरोसा नहीं, जो फिर उनके दिलों में भरा जा सके। सवाल बहुत से हैं, जवाब हमें ही ढूंढने हैं। हम भी उम्मीद कर रहे हैं कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार मिलकर उन्हें भरोसा दिलाएं कि वे सही सलामत अपने घरों को पहुंचेंगे। उनका भरोसा और रोटी उन्हें लौटाई जाए, जिस पर उनका अधिकार है।
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