सलाखों के पीछे Mothers Day

  • 4 years ago
तीन साल की गुडिया और दो साल का बिट्टू सवेरे उठते हैं तो उनकी पहली मां उनको फीडिंग कराने के बाद नहलाती है... उसके बाद इंतजार कर रही दूसरी मां दोनो बच्चों को घुमाने ले जाती है और मंदिर ले जाकर वहां ईश्वर के दर्शन कराती है... फिर तीसरी मां इन बच्चों के साथ पाक में खेलती है.... दोनो बच्चे बोर हो जाते हैं तो इनकी चौथी मां बच्चों को हॉल् में रखे खिलौनों के पास ले जाती है और वहां बच्चे घंटों खेलते हैे... अब भूख लगने पर एक अन्य मां बच्चों को खाना खिलाती है और फिर बच्चे सो जाते हैं। उठने के बाद फिर से यही रूटीन और अब अन्य माओं के साथ...। ये सब ऐसी जगह पर हो रहा है जहां अपनी मर्जी से जाना कोई पसंद नहीं करता.. यानि जेल में सलाखों के पीछे। पूरा दृश्य महिला कारागार जयपुर का है जहां करीब सौ से ज्यादा मंहिला बंदियों का जीवन दो छोटे बच्चों के इर्द गिर्द घुमता है। जेल स्टाफ भी बच्चों को दुलार करने में पीछे नहीं रहता...।


गंभीर अपराधों में बंद हैं दोनो बच्चों की माएं
जेल प्रशासन ने बताया कि दोनो बच्चों की माएं हत्या और अन्य गंभीर अपराधों में बंद हैं। करीब दो साल से दोनो बच्चों की माएं बंद हैं। एक बच्चे का जन्म तो मां के जेल में आने से कुछ समय पहले ही हुआ था। ऐसे में बच्चे और मां की विशेष देखभाल की गई ताकि उनको परेशानी नहीं हो। पिछले साल तक जेल में करीब छह बच्चे थे जिनकी उम्र दो साल से सात साल के बीच थी। लेकिन उसके बाद या तो उनकी माताओं की बेल हो गई या सजा पूरी..। फिलहाल दो ओर तीन साल के दो बच्चे जेल में कई माओं का दुलार पा रहे हैं।

एक ही जैसे कपड़े और मास्क, फिर भी बच्चे पहचान लेते हैं मां को
जयपुर महिला कारागार में वर्तमान में 123 महिला बंदी बंद हैं जो प्रदेश भर के जिलों से हैं। दूसरी महिला कारागार जोधपुर में है जहां पर अभी करीब साठ महिला बंदी हैं। जयपुर में सबसे पुरारा महिला कारागार है। जेल में बंद महिला बंदियों को एक से कपड़े पहनने होते हैं। जिसे जिले की पोशाक कहा जाता है। अधिकतर इसे ही पहनती हैं। वर्तमान में सभी महिला बंदी हर समय मास्क लगाकार रहती हैं जिससे कई बार बच्चों के लिए भी अपनी माओं को पहचानना एक टास्क जैसा हो जाता है। लेकिन बच्चे हर बार इस टास्क को पूरा करते हैं और जीत के रुप में उनको उनकी जन्मदायिनी मां मिलती है।


पूरा ख्याल रखा जाता है बच्चों का
महिला कारागार की अधीक्षक मोनिका अग्रवाल ने बताया कि शायद ही कोई दिन जाता हो जब दोनो बच्चों से मुलाकात नहीं होती हो। पूरा दिन उछल कूद मचाते हैं और बंदियों एवं स्टाफ को बिजी रखते हैं दोनो बच्चे। दोनो के खाने—पीने और खेल कूद का पूरा ध्यान पूरा जेल ही रखता है। वहीं जेल में बंद अन्य महिला बंदियों के बच्चे और परिवार के अन्य लोग भी मुलाकात के समय मिलने आते हैं। उनकी नियमानुसार मुलाकात भी कराई जाती हैं।

#MothersDay

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