स्वयं मुक्त रहूँगा, औरों को मुक्ति दिलाऊँगा || आचार्य प्रशांत, उत्तर गीता पर (2019)
  • 4 years ago
वीडियो जानकारी:
पार से उपहार शिविर, 14.12.19, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश

प्रसंग:

ततः कदाचिन्निर्वेदान्निराकाराश्रितेन च।
लोकतन्त्रं परित्यक्तं दुःखार्तेन भृशं मया॥३८॥
~ उत्तर गीता, अध्याय १, श्लोक ३८
भावार्थ: इस प्रकार बारम्बार क्लेश उठने से एक दिन मेरे मन में बड़ा खेद हुआ और मैंने दुखों से घबराकर निराकार परमात्मा की शरण ली तथा समस्त लोकव्यवहार का परित्याग कर दिया।।

नाहं पुनरिहागन्ता लोकानालोकयाम्यहम्।
आसिद्धेराप्रजासर्गादात्मनो मे गतीः शुभाः॥४०॥
~ उत्तर गीता, अध्याय १, श्लोक ४०

~ मुक्ति माने क्या?
~ मुक्ति कैसे पाएं?
~ मुक्ति के लिए कौन सी साधना करें?
~ दूसरों की मुक्ति में कैसे सहायक होएं?

संगीत: मिलिंद दाते
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