बुद्धत्व और शिष्यत्व || आचार्य प्रशांत, ज़ेन पर (2018)

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शब्दयोग सत्संग, हार्दिक उल्लास शिविर
१२ अगस्त, २०१८
उत्तराखंड

एक जिज्ञासु ने बुद्ध से पूछा-‘मुझे मौन से या शब्दों से मौन का मार्ग बताएँ’ यह सुनकर बुद्ध शांतिपूर्वक अपने ध्यान में मग्न रहे। जिज्ञासु ने थोड़ी देर बाद सिर झुकाकर बुद्ध को धन्यवाद दिया और कहा- आपकी करूणा से मेरे मन पर छाए अंधकार के बादल छट गए, मैं जागृति में स्थापित हुआ। इतना कह कर जिज्ञासु वहाँ से चला गया। आनंद यह सब कुछ देख रहा था, कुछ भी समझ न आने पर उन्होंने बुद्ध से पूछा उस जिज्ञासु ने आखिर क्या पाया? बुद्ध ने कहा एक अच्छे घोड़े को चलाने के लिए चाबुक की छाया ही काफ़ी होती है।

प्रश्न: आचार्य जी, न शब्द थे न मौन था, फिर भी जिज्ञासु को बुद्ध की करूणा से जागृति प्राप्त हुई। बुद्ध कौन से चाबुक की छाया की बात कर रहे हैं? कृपया प्रकाश डालें। बुद्धत्व और शिष्यत्व का असली अर्थ कैसे समझें?

संगीत: मिलिंद दाते