अमूल्य से निकटता ही मूल्यहीन का त्याग है || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2014)

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शब्दयोग सत्संग
५ नवम्बर, २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

कुत्रापि खेदः कायस्य
जिह्वा कुत्रापि खेद्यते।
मनः कुत्रापि तत्त्यक्त्वा
पुरुषार्थे स्थितः सुखम्॥
~ अष्टावक्र गीता (अध्याय १३, श्लोक २)

प्रसंग:
पुरुषार्थ में कैसे स्थापित रहे?
त्याग क्या है?
त्याग कैसे करें?
मन क्षुद्र कामो में क्यों लगा रहता है?

संगीत: मिलिंद दाते