पुरुष की स्थिरता और प्रकृति की चंचलता || आचार्य प्रशांत, संत रहीम पर (2018)
- 4 years ago
वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग, फ्री हर्ट्स कैंप
१४ मई, २०१८
नैनीताल
दोहा:
कैसे निबहै निबल जन, करि सबलन सों गैर ।
जैसे बस सागर विषै, करत मगर सों बैर ।।
~ संत रहीमदास जी
कमला थिर न रहीम जग, यह जानत सब कोय।
पुरुष पुरातन की बहू, क्यों न चंचला होय। (संत रहीमदास जी)
प्रसंग:
कैसे निबहै निबल जन, करि सबलन सों गैर ।
जैसे बस सागर विषै, करत मगर सों बैर || इस दोहे का क्या भावार्थ है?
सच्चाई पर कैसे चलें?
पुरुष की स्थिरता और प्रकृति की चंचलता क्यों?
अपना निर्बलता कैसे त्यागे?
शब्दयोग सत्संग, फ्री हर्ट्स कैंप
१४ मई, २०१८
नैनीताल
दोहा:
कैसे निबहै निबल जन, करि सबलन सों गैर ।
जैसे बस सागर विषै, करत मगर सों बैर ।।
~ संत रहीमदास जी
कमला थिर न रहीम जग, यह जानत सब कोय।
पुरुष पुरातन की बहू, क्यों न चंचला होय। (संत रहीमदास जी)
प्रसंग:
कैसे निबहै निबल जन, करि सबलन सों गैर ।
जैसे बस सागर विषै, करत मगर सों बैर || इस दोहे का क्या भावार्थ है?
सच्चाई पर कैसे चलें?
पुरुष की स्थिरता और प्रकृति की चंचलता क्यों?
अपना निर्बलता कैसे त्यागे?