ज्ञानी की क्या पहचान? || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

  • 4 years ago
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शब्दयोग सत्संग
१२ अप्रैल २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से,

न विक्षेपो न चैकाग्र्यं नातिबोधो न मूढता ।
न सुखं न च वा दुःखं उपशान्तस्य योगिनः ॥१०॥

अपने स्वरुप में स्थित होकर शांत हुए तत्वज्ञ के लिए न विक्षेप है, और न तो एकाग्रता। न ज्ञान है, न सुख है न दुःख।

स्वाराज्ये भैक्षवृत्तौ च लाभालाभे जने वने।
निर्विकल्पस्वभावस्य न विशेषोऽस्ति योगिनः॥११॥

जो तत्वज्ञयोगी स्वभाव से ही निर्विकल्प है, उसके लिए अपने राज्य में, अथवा भिक्षा में, लाभ-हानि में, भीड़ में, अथवा सूने जंगल में कोई अंतर नहीं है।

प्रसंग:
ज्ञान क्या है?
ज्ञानी की क्या पहचान हैं?
हम अपना छवि क्यों बनाना चाहते है?
क्या ज्ञानी को सुख दुःख का अनुभव नहीं होता है?
जो तत्वज्ञयोगी स्वभाव से ही निर्विकल्प है, उसके लिए अपने राज्य में, अथवा भिक्षा में, लाभ-हानि में, भीड़ में, अथवा सूने जंगल में कोई अंतर नहीं है।

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