झीनी माया और ज़्यादा खतरनाक है || आचार्य प्रशांत, अपरोक्षानुभूति पर (2018)

  • 5 years ago
वीडियो जानकारी:

१९ अप्रैल, २०१८
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
लिङ्गं चानेकसंयुक्तं चलं दृश्यं विकारि च ।
अव्यापकमसद्रूपं तत्कथं स्यात्पुमानयम् ॥ ३९॥

भावार्थ: सूक्ष्म देह भी अनेक तत्वों का संघात, चलायमान, दृश्य, विकारी, अव्यापक और असत्स्वरूप है, वह भी पुरुष कैसे हो सकता है?

~ अपरोक्षानुभूति

अपरोक्षानुभूति को कैसे समझें?
झीनी माया और मोटी माया में क्या अंतर है?
साधना में झीनी माया क्यों अधिक खतरनाक है?


संगीत: मिलिंद दाते