Ways to make Lord Ganesha Happy- Ganesh Chaturthi - Vinayak Chaturthi Special !

  • 5 years ago
Ganesh Chaturthi Special

गणेश चतुर्थी 2 सितंबरः गणेशजी के बारे में बेहद रोचक और काम की बातें

इसलिए कहलाते हैं गणेश

गण का अर्थ होता है कोई विशेष समुदाय या फिर विशेष समूह। ईश का अर्थ है स्‍वामी। शिवगणों और सभी देवगणों के स्‍वामी होने के क ..

यह है गणेशजी का परिवार

पिता- भगवान शंकर
माता- भगवती पार्वती
भाई- श्री कार्तिकेय (बड़े भाई)
बहन- -अशोकसुन्दरी
पत्नी- दो (१) ऋद्धि (२) सिद्धि (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ
प्रिय भोग (मिष्ठान्न)- मोदक, लड्डू
प्रिय पुष्प- लाल रंग के
प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब), शमी-पत्र
अधिपति- जल तत्व के
प्रमुख अस्त्र- पाश, अंकुश
वाहन - मूषक

इसलिए कहलाते हैं लंबोदर

एक बार इंद्र के साथ लड़ने से गणेश जी को बहुत ज्यादा भूख और प्यास लगी। इसके बाद गणेश जी ने काफी फल खा लिए और खूब सारा गंगाजल पी लिया। इस तरह उनका पेट काफी बढ़ गया और उन्हें लंबोदर के नाम से पुकारा जाने लगा। गणेशजी का पेट लंबा होने की की वजह से वह बहुत सी चीजों को आसानी से अपने अंदर समाविष्ट करकर लेते हैं।

ॐ है साक्षात स्‍वरूप

पुराणों के अनुसार भगवान गणेश का पूजन करने से समस्त देवी-देवताओं की पूजा का प्रतिफल प्राप्त हो जाता है। श्रुतियों में गणेशजी को प्रणव (ॐ) का साक्षात स्वरूप बताया गया है। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आदिदेव गणेश ही ब्रह्माजी के रूप में सृष्टि का सृजन करते हैं, विष्णु रूप में संसार का पालन करते हैं और रुद्र (महेश) के रूप संहार करते हैं। गणेशजी के एकदंत गजमुख को ध्यान से देखने पर प्रणव (ॐ ) ही दृष्टिगोचर होता है। भगवान गणेश की पूजा-पद्धति अत्यंत सरल है।

उनकी पूजन सामग्री में मोदक, सिंदूर और हरी दूब को अवश्य शामिल किया जाता है। यदि गणेश जी की मूर्ति उपलब्ध न हो तो एक सुपारी पर मौली (लाल रंग का कच्चा धागा) बांधकर उनका प्रतिरूप बनाया जाता है। उनकी पूजा में स्वस्तिक (।। "।।) की आकृति बनाई जाती है, जो गणेश परिवार का प्रतीक है, जिसमें उनकी पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि तथा पुत्र शुभ-लाभ शामिल हैं।

शारिरिक संरचना-
गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।

चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।

बारह नाम-
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश,विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुराण में पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि में आया है। विद्यारम्भ तथ विवाह के पूजन के प्रथम में इन नामो से गणपति के अराधना का विधान है।



कथा-प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवती और पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहाँ आया और उसने अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया।

कौंच ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और काँप

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